प्रदेश के 11 जिलों की 134 तहसीलों की जमीनों का ‘जरीब’ के बजाय पहली बार सेटेलाइट से होगा सर्वे
कई तहसीलों में 30 से 40 साल बाद गांव व खेतों का नया ‘नक्शा’ बनेगा। इससे जमीन व गांवों की सीमा को लेकर चल रहे विवाद खत्म होंगे। इस प्रोजेक्ट पर करीब 125 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। प्रदेश में डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड माॅर्डनाइजेशन प्रोग्राम ( डीआईएलआरएमपी) के तहत 11 जिलों में सर्वे-रीसर्वे का चल रहा है। जिसके तहत सेटेलाइट इमेज के माध्यम से आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए गांवों के नए अभिलेख तैयार किये जा रहे है, जिससे मौके एवं अभिलेख में एकरूपता हो। भूप्रबंधन विभाग ने सैटेलाइट आधारित भू-पैमाइश के लिए गाइडलाइन जारी कर दी है। सर्वे-रीसर्वे का काम चार प्राइवेट कंपनियों को दिया गया है।
इन जिलों में हो रहा है सर्वे-रीसर्वे
प्रदेश के जयपुर, भीलवाड़ा, बाड़मेर, जोधपुर, टोंक, झालावाड़, राजसमंद, बांसवाड़ा, चुरू, श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ की 130 तहसील और अजमेर जिले की चार तहसीलों का सेटेलाइट से सर्वे-रीसर्वे के बाद नए रेवन्यू नक्शे बनेंगे।
आधुनिक मशीनों व डिजिटल सिस्टम से होगा सर्वे
सेटलमेंट व तहसीलों की ओर से अब तक अमीन व पटवारी ‘जरीब’ (लोहे की चैन) से जमीन की नपाई की जाती थी। इससे कई बार जमीन की सीमा को लेकर विवाद हो जाता था। गांव व खेत की जमीन के सीमा विवाद को लेकर रेवन्यू कोर्ट सैकड़ों विवाद चल रहे है। इन विवादों को निपटाने के लिए अब आधुनिक मशीनों से सर्वे-रीसर्वे होगा। सेटेलाइट की इमेज (फोटो) को कंप्यूटर पर रेवन्यू नक्शों पर रख कर क्रॉस चैक किया जाएगा। अब इलेक्ट्रॉनिक टोटल स्टेशन मशीन से खेत की सीमा देखी जाएगी।